बशर्ते यहां पर मूलभूत सुविधाएं मुहैया करा दी जायें। पूर्व में नक्सल प्रभावित यह क्षेत्र हमेशा से उपेक्षित रहा है, लेकिन बीच के दौर में घोर नक्सल प्रभावित हो जाने पर यहां के विकास के लिए तमाम योजनाएं बनाई गईं। इसमें से कुछ को तो अमली जामा पहनाया गया और कुछ कागजों में रह गयीं। यही कसक इस क्षेत्र को पर्यटन का हब बनाने में बाधा बना हुआ है।
पन्नूगंज से पनौरा, चिचलिक, खोड़ैला, बड़ैला, बसुहारी, महुली आदि गांवों से होते हुए बिहार तथा झारखंड सीमा तक जाने के लिए सड़कें बन गयी हैं। अपराध नियंत्रण के लिए जगह-जगह थाना और पुलिस चौकी बना दी गयी हैं, लेकिन इसके आगे की तस्वीर साफ नहीं है। सबसे जरुरी स्थानीय रोजगार, जिसमें पर्यटन की असीम संभावनाएं शामिल हैं, अभी भी पहल से परे हैं। पहले सड़कों के अभाव और नक्सल प्रभावित क्षेत्र होने के कारण यहां प्राकृतिक संसाधनों का दोहन नहीं हुआ है। जंगल, पहाड़, झरने तथा घाटियां अभी भी पूर्ववत हैं। इसके चलते यहां प्राकृतिक छटा मनोहारी है। इस इलाके में ऐसे कई स्थान हैं, जहां पर्यटन के दृष्टिकोण से कुछ संशाधन बना दिये जायें तो यह पूरा इलाका पर्यटन के नक्शे पर चमक उठेगा। नगवां, सिलहट डैम के साथ-साथ कई ऐसी पहाड़ियां, झरने हैं जहां के बारे में सिर्फ वहां के आदिवासी ही जानते हैं। कुछ स्थानों पर यह लोग पूजा करते हैं, कहीं साल में एकाध बार मेला लगाते हैं तो कहीं टोली बनाकर घूमने जाते हैं। साल 2019 के अंतिम दिन खोड़ैला गांव से बसुहारी जाने वाले मार्ग पर गायघाट पहाड़ी में कोहरे और बादलों का सुंदर दृश्य देखने के लिए स्थानीय लोगों की काफी भीड़ जुटी हुई थी। हजार-डेढ़ हजार फुट ऊपर पहाड़ पर तेज धूप तथा नीचे बसुहारी घाटी में घने कोहरे की चादर आकर्षक दृश्य बना रही थी। कुछ उत्साही युवा यहीं से लोटवा पहाड़ की ऊंची चोटी से बादलों के टकराने का मनोहारी दृश्य अपने मोबाइल के कैमरे में कैद करने में मस्त थे। ऐसे माहौल में स्थानीय आदिवासी भी महसूस करते हैं कि अगर ऐसे स्थानों पर जिम्मेदारों की नजर पड़ जाये तो स्थानीय लोगों को भी रोजगार मिलेगा।