जिला मुख्यालय से करीब 25 किमी दूर स्थित विजयगढ़ दुर्ग चंद्रकांता की अमर प्रेम कहानी का प्रतीक है। नौगढ़ के युवराज संग उसकी प्रेम कहानी को लेकर बना टीवी सीरियल चंद्रकांता प्रसारित हुआ था, जो काफी सराहा गया। लेकिन प्रशासनिक उपेक्षा के कारण यह स्थल अवशेष मात्र रह गया है।सरकारों ने इस ऐतिहासिक स्थल के संरक्षण पर ध्यान नहीं दिया तो आने वाले दिनों में यह तिलिस्मी किला महज इतिहास बनकर रह जाएगा। इसकी पहचान सिर्फ मीरान शाह बाबा की मजार और राम-सीता सरोवर के नाते बची है।
करीब 1040वीं सदी में राजा चेत सिंह का बनवाया गया विजयगढ़ दुर्ग तिलिस्मी है। चंद्रकांता धारावाहिक से ख्याति प्राप्त कर चुके इस तिलिस्मी दुर्ग की खासियत है कि किले के अंदर से गुफा के जरिए नौगढ़ और चुनार गढ़ किले के लिए रास्ता है। यह रास्ता तिलस्म से ही खुलता है। किले का खजाना भी इन्हीं गुफाओं में छिपे होने की संभावना अक्सर लोगों द्वारा जताई जाती है। दुर्ग के ऊपर बने छोटे-बड़े सात तालाब हैं। इनमें रामसरोवर तालाब और सीता तालाब में कभी पानी सूखता। यहां कांवरिये जल भरकर जलाभिषेक करने जाते हैं। सीता तालाब मीरानशाह बाबा के मजार के ठीक सामने है। किंवदंतियां यह भी हैं कि पहले यहां लोग घूमने आते थे तो तालाब से बर्तन निकलता था। खाना खाने के बाद उसे धोकर लोग उसी तालाब में छोड़ देते थे। किले के पश्चिम दिशा में मुख्य द्वार है, जो धराशायी हो रहा है।
इसकी दीवारें गिर रही हैं। लोगों का कहना है कि जिस तरह से दीवारों का ढहना जारी है उससे कुछ दिनों में इनका अस्तित्व समाप्त हो जाएगा। किले के दक्षिण और पूर्व के कोने पर खिड़की का रास्ता है। ज्यादातर लोग इसी रास्ते से किले पर जाते हैं, क्योंकि यह कम ऊंचा है। यहां कुछ सीढ़ियां भी बनी हैैैं लेकिन अधूरी हैं। पर्यटन विभाग ने कुछ काम कराया है लेकिन स्थानीय लोगों को काम के बारे में नहीं पता। जमीन से करीब पांच सौ मीटर ऊंचाई पर बने इस किले के अंदर जो कमरे बने थे वो खंडहर हो गए हैं। यहां दो यात्री शेड बना है उसी में रहते हैं। बारिश आंधी में लोग परेशान होते हैं। मीरान शाह बाबा की मजार और हनुमान मंदिर के पास छप्पर में लोग रुकते हैं। अब इस किले की पहचान बाबा मीरान शाह की मजार, हनुमान मंदिर और राम-सीता सरोवर तक ही सिमट कर रह गई है। वजह कि मजार पर साल भर में एक बार उर्स लगता है जिसमें लाखों जायरीन उमड़ते है।