भारत में कोविड-19 लॉकडाउन के बाद असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले हजारों दैनिक मजदूर झुंड बनाकर बड़े शहरों को छोड़ रहे हैं। उनके पास अपने गांव लौटने के अलावा कोई और विकल्प नहीं है। गांवों से शहरों की ओर पलायन का सिलसिला कोई नया मसला नहीं है। गांवों में कृषि भूमि के लगातार कम होने, आबादी बढ़ने और प्राकृतिक आपदाओं के चलते रोजी-रोटी की तलाश में ग्रामीणों को बड़े शहरों की ओर मुंह करना पड़ता है। कोरोना वायरस को लेकर हुए लाकडाउन से उपजी आर्थिक स्थिति में लोग यहीं मांग कर रहे हैं कि सरकार रोजगार के ऐसे साधन मुहैया कराएं जिससे युवाओं को उनके गांव के करीब जिले में ही रोजगार उपलब्ध हो सके। ग्रामीण क्षेत्रों में बुनियादी सुविधाओं की कमी भी पलायन का एक दूसरा बड़ा कारण है। गांवों में रोजगार और शिक्षा के साथ-साथ बिजली, आवास, सड़क, संचार, स्वच्छता जैसी बुनियादी सुविधाएं शहरों की तुलना में बेहद कम है। इन बुनियादी कमियों के साथ-साथ गांवों में भेदभावपूर्ण सामाजिक व्यवस्था के चलते शोषण और उत्पीड़न से तंग आकर भी बहुत से लोग शहरों का रुख कर लेते हैं। ऐसा नहीं है कि सरकार ने इन कारणों और परिस्थितियों को दूर करने की दिशा में प्रयास नहीं किए हैं। प्रयास हुए हैं लेकिन यह प्रयास उस स्तर तक परवान नहीं चढ़ सका है, जिससे हार बेरोजगार को रोजगार से जोड़ा जा सके। राबर्ट्सगंज स्थित संत जेवियर्स उच्चतर माध्यमिक विद्यालय क्वारंटाइन सेंटर में 15 ऐसे युवा एक माह से अधिक दिनों से हैं, जिनका निवास नेपाल ही नहीं यूपी के सिद्धार्थनगर भी है। कुछ युवाओं के पास यूपी से जारी आधारकार्ड भी है लेकिन मजबूरी यह है कि इन युवाओं ने रजिस्टर पर अपना पता नेपाल का दे रखा है।