गुलाम भारत के लोगों को यातनाएं देने, उन्हें सजा देने के लिए ब्रिटिश हुकूमत ने शाहगंज में आज के 138 साल पहले कारागार बनवाया था। वह आज भी वहीं पर है। यहां खड़ा एक वृक्ष यहां के सेनानियों पर बरसाये गये कोड़े और किये गये जुल्म का मौन साक्षी भी है। यही वह कारागार है जिसमें आग लगाने के कारण इस क्षेत्र के आधा दर्जन सेनानियों पर कोड़े बरसाये गये और उन्हें नौ-नौ माह के लिए जेल में डाल दिया गया था।
अंग्रेजों द्वारा बनवाया गया कारागार व उसकी बैरकें आज भी मौजूद हैं। स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों पर हुए जुर्म की गवाह जेल के दर्रे व दीवार आज भी देखने में डरावने से लगते हैं। मजबूत लोहे के शिकंजे और बारह बैरकें आज भी अपनी मौजूदगी का एहसास कराती हैं। अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान कुछ क्रांतिकारी स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने जेल और मौजूद चौकी को आग लगा दी थी। जिसके लिए उन्हें नौ महीने जेल की सख्त सजा सुनाई गई थी। जानकार लोग बताते हैं कि 1880 में अंग्रेजों ने इस जेल का निर्माण कराया था।