रेणुकापार के आदिवासी क्षेत्रों के मामले में पारंपरिक हो चुकी जिला प्रशासन की उदासीनता ने सारे रिकार्ड तोड़ दिए हैं। आदिवासी बाहुल्य क्षेत्रों की समस्या के मामले में दिखाई जा रही संवेदनहीनता ने जानलेवा स्थिति को स्थायी कर दिया है। मध्यप्रदेश सहित चोपन ब्लाक के दर्जनों सीमावर्ती टोलों को जोड़ने वाले परेवा नाला पर पुल को टूटे लगभग आठ माह हो गए लेकिन जिला प्रशासन अपनी निरंकुशता बनाए हुए है। 18 अगस्त 2018 को टूटे पुल की मरम्मत न होने के कारण आवागमन में भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। पुल टूटने के बाद खतरनाक हो चुके आवागमन में अभी तक एक मौत सहित आधा दर्जन से ज्यादा लोग घायल हो चुके हैं। फिर भी ग्रामीण सहित तमाम वाहन विवशता में जान जोखिम में डालकर नाले को पार कर रहे हैं।
मध्य प्रदेश को जोड़ने वाले इस महत्वपूर्ण पुल के टूटने के कारण स्कूली बच्चों सहित ग्रामीणों को पुराने जोखिम भरे रास्ते से आवागमन करना पड़ रहा है। वर्तमान में लोकसभा चुनाव की तैयारियों में भी इसका असर सा़फ साफ दिखाई पड़ रहा है। भरहरी ग्राम पंचायत के दर्जनों टोलों तक जाने में दिक्कतें पेश आ रही है। वैकल्पिक व्यवस्था में भी गड़बड़ी
नाले पर बने पुल के टूटने के करीब आठ महीने बाद उक्त पुल से 50 मीटर पहले पुराने छलके पर पुलिया के निर्माण में गड़बड़ी दिखाई पड़ रहा है। वैकल्पिक व्यवस्था के तहत जिला पंचायत द्वारा बनाई जा रही पुलिया में मानक के अनुसार सामग्री का प्रयोग नहीं किया गया।