नीति आयोग के आंकड़े में पिछड़े जिले में स्वास्थ्य सुविधा की स्थिति बदतर है। करीब डेढ़ लाख की आबादी को मुकम्मल चिकित्सा सुविधा मुहैया कराने के लिए कोन में न्यू प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र बना है लेकिन यहां व्यवस्थाओं व सुविधाओं के नाम पर कुछ भी नहीं है। लोगों का इलाज भगवान भरोसे ही है। यहां न तो समय से चिकित्सक आते हैं और न ही समय से इलाज की सुविधा मिलती है। फार्मासिस्ट के सहारे अस्पताल का संचालन होता है।
दैनिक जागरण की टीम आफिस लाइव कार्यक्रम के तहत सुबह साढ़े आठ बजे अस्पताल पहुंची। जहां पता चला कि चिकित्सक की कुर्सी खाली है। आठ लोगों की टीम में सिर्फ एक फार्मासिस्ट राजकुमार अपना कार्य करते मिला। पूछने पर बताया गया कि अब लोग आते ही होंगे। वहीं चिकित्सक के बारे में बताया गया कि ओबरा रहते हैं। उनका कक्ष सही नहीं है। दीवार कब गिर जाएगी कोई ठीक नहीं। अस्पताल परिसर में वर्षों से खंभे गिरे हैं जिस वजह से अस्पताल परिसर में बिजली भी जुगाड़ से जलाई जाती है। आवासों में पानी नही है। जिससे चिकित्सक ओबरा रहते है और 9 बजे तक आते हैं। अस्पताल परिसर में किसी रूम में पंखा नहीं है। जिससे मरीज व कर्मचारी गर्मी में रहने को विवश हैं। अस्पताल में स्वीपर के न होने से वैकल्पिक सफाई कर्मी रखा गया है। उसकी भी तनख्वाह नहीं मिल रही है। जिससे मुकम्मल सफाई नहीं हो रही है। वहीं होम्योपैथ के चिकित्सक सप्ताह में दो दिन बैठते हैं